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ऐसे तो मिट चुकी गरीबी

socailesue
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योजना आयोग ने गरीबी की जो
नई परिभाषा तय की है, उसक ो लेकर खासी बहस छिड़ी हुई है। आयोग का कहना है कि देश में पिछले एक दशक में गरीबों की संख्या में काफी कमी आयी है। उसने इसका श्रेय केन्द्र सरकार को दिया। 2004-05 में जहां देश में गरीबों की संख्या 37.2 फीसदी थी, वह घटकर 2011-12 में 21ï ़93 फीसदी रह गयी है। योजना आयोग के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 25.7 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और शहरों में 13.7 फीसदी। गरीबी घटाने केआंकड़े एनएएसओ के सर्वेक्षणों से लिये गये हैं, जो लोगों की खपत से जुड़े खर्च पर आधारित हैं। इन आंकड़ों केअनुसार हर साल लगभग दो करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकाल लिये जाते हैं। गांवो में 816 रूपये प्रतिमाह से कम कमाने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे माना गया है और शहरों में 1000 रूपये प्रतिमाह कमाने वाले उससे ऊपर हैं। हालांकि यह सच है कि देश में गरीबी घटी है। लोगों केरहन-सहन का स्तर ऊंचा हुआ है। अब भीषण विपन्नता और अभावहीनता कम नजर आती है। लेकिन सरकारी आंकड़ो ने कई सवाल खड़े किये हैं सबसे बड़ा सवाल यही कि इन आंकड़ो मेंं कितनी सच्चाई है? लेकिन अब भी यह कहना कि गांव में 27.20 रूपये प्रतिदिन और शहरों में 33.30 रूपये कमाने वाले गरीबी रेखा के नीचे नहीं हैं हजम नहीं होता। चलो एक बार यह मान भी ले कि इतने में वे पेट भर लेंगे तो इसकेअलावा और भी जो जरूरतें होती हैं उनका क्या होगा? छलांग लगाती इस मंहगाई में यह लोग भोजन केअलावा अन्य जरूरी चीजें खरीदने के लिए पैसा कहां से लायेंगे? सिर्फ पेट भरना गरीबी से पार होने की परिभाषा है क्या? जिन्हें गरीबी रेखा के ऊपर माना जा रहा है उन्हें क्या शुद्घ पेयजल, स्वास्थ्य सुविधाएं व उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा तथा पौष्टिïक आहार आदि मिल पा रहे हैं? यदि यह लोग मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं, तो ऐसा मान लिया जाय कि वे गरीबी रेखा के पार हैं। यहां सवाल यह भी है कि यदि गरीबी दूर हो रही है तो क्या रोजगार भी बढ़ रहे हैं? शायद नहीं। जब रोजगार ही नहीं बढ़ेगे तब गरीबी कैसे मिटेगी? यह बात अलगहै कि योजना आयोग नित नये आंकड़े पेश कर गरीबी घटाने का दावा करता है। लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। 1981 में दुनियां के 22 फीसदी गरीब भारत में थे, वहीं आज उनकी संख्या बढ़कर 33 फीसदी हो गयी है। खैर जो भी हो योजना आयोग केइन आंकड़ो को देखकर यही कहा जा सकता है कि उसने गरीबों का एक बार फिर मजाक बनाया है। यदि सरकार वास्तव में गरीबी का उन्मूलन करना चाहती है तो उसे ठोस कदम उठाने होगे। विशाल जनसंख्या केभार को संभालने केलिए साधन और संसाधन जुटाने होगे। रोजगार बढ़ाना होगा इसकेअलावा गरीबी मिटाने केलिए सार्थक योजनाएं बनाने की आवश्यकता है अन्यथा की स्थिति में इन आंकड़ों से कोई मकसद हल होने वाला नहीं। केन्द्र सरकार इन आंकड़ो के सहारे आमजन को भ्रमित जरूर कर सकती है।

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