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………अन्यथा यूं ही सजते रहेंगे बाबाओं के दरबार

socailesue
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भारत में पिछले कुछ दशकों से गिने-चुने अपवादों को छोड़कर आस्था व्यवसाइयों की एक ऐसी जमात उभर आई है,जो लोगों की आस्था का व्यवसाय कर रही है और करोडों का वारा-न्यारा कर रही है। आस्था के इन ठेकेदारों ने अपना जाल इस तरह फैला रखा है कि उसकी जकड़ में फंसा आम आदमी सही और गलत में भेद करना ही भूल जाता है। ऐसे ही ठेेकेदारों की जमात में शामिल है आसाराम बापू जो इस समय बलात्कार के आरोप में जेल में बंद है। आसाराम धूर्त संत है या भगवान इसक ो लेकर पिछले कई दिनों से पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है। उसके अंधभक्त अब भी उसे भगवान बता रहे हैं। दरअसल,संत,बाबा या बापू जैसी पवित्र उपाधियों का ओढऩा ओढ़कर मैदान में कूदने वाले आस्था के ये ठेकेदार अपनी वाक पटुता के चलते आम आदमी को प्रभावित करते हैं। सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने वाले ये ठेकेदार अपने एजेन्टों के माध्यम से अपने चमत्कारों को जनता तक पहुंचाते हैं। आश्रम और जनकल्याण केनाम पर सरकारों से जमीन आंबटित करा लेते हैं। कभी-कभी तो ये जमीन पर अबैध कब्जा करने से भी नहीं चूकते। आम आदमी ही नहीं धनाड्य लोग भी इनके जाल में फंस जाते हैं। यह उन्हें फंास कर कालेधन को सफेद करने का खेल खेलते हैं। राजनेता भी इनके लपेटे से नहीं बच पाते हैं। राजनेताओं को वोट का लालच देकर यह पाखन्डी उन्हें भी अपना भक्त बना लेते हैं। इसके अलावा मीडिया में स्वयं को ईश्वर का अवतार सिद्ध करवाकर धन तथा अपने प्रभाव को बढ़ाते हैं। एक बात और कि कोई भी समर्थक इनके कुकृत्यों का कभी विरोध नहीं कर पाता। यदि कोई समर्थक ऐसा करने की कोशिश भी करता है तो उसे दबा दिया जाता है। कुल मिलाकर ऐशो आराम की जिन्दगी जीने वाले यह पाखन्डी ऐसी सत्ता स्थापित करते हैं जो लोगों की बुद्धि पर हावी होकर उनका सब कुछ छीन लेती है। भक्त उनके पीछे ठीक वैसे ही भागते हैं जैसे की अपराधी राजनेता के पीछे उसके समर्थक। खैर,जो भी हो बड़ा सवाल यह है कि वे कौन से कारण हैं जिनके चलते आम आदमी इन अधर्मियों की शरण में जाने को मजबूर हो जाता है। तो इसके लिए मनुष्य की लालची प्रवृत्ति भी किसी हद तक जिम्मेदार है। दूसरे,देश को भ्रष्टï तथा सिद्धान्त विहीन राजतन्त्र जिसके चलते देश मंहगाई,भ्रष्टïाचार,आतंकवाद,बेरोजगारी तथा कुपोषण आदि जैसी गम्भीर समस्याओं से जूझ रहा है। शायद इसीलिए आम आदमी का देश के भाग्य विधाताओं पर से भरोसा उठ सा चुका है। वह जीवन के हर मोर्चें पर अपने आपको असुरक्षित तथा निराश महसूस करने लगा है। उसे न तो रोजगार मिल पा रहा है और न ही रोटी कपड़ा और मकान। सो वह ऐसे में उस ओर दौड़ लगा देता है जहां से उसे सभी कुछ प्राप्त होने की गारन्टी मिलती दिखाई देती है। यह गारन्टी उसे सिर्फ धूर्त बाबाओं के दरबारों में ही मिलती नजर आती है। इसलिए वह उनके झांसे में आकर उनके आगे नतमस्तक हो जाता है। इन पाखन्डियों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के बाद वह उनके इशारों पर कठपुतली की तरह नाचने लगता है। यहीं नहीं वह अपने शोषण के खिलाफ भी कुछ नहीं बोल पा रहे। यदि हम सामाजिक ताने-बाने को टूटने तथा लोगों को पाखन्डियों से बचाना चाहते हैं तो उनके खिलाफ एक मुहिम छेडऩी होगी और यह मुहिम उनको उनके किये की सजा दिलाये जाने तक जारी रखनी होगी। इसके अलावा हमें अपने भीतर वैज्ञानिक सोच पैदा करनी होगी। साथ ही लोगों को लोभ-लालच भी त्यागना होगा। क्योंकि जब तक आदमी लालची बना रहेगा, सच मान लो तब तक इन धूर्त बाबाओं के दरबार यूं ही सजते रहेंगे। लोग लुटते रहेंगे।

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