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इस्तीफा-इस्तीफा-इस्तीफा और सिर्फ इस्तीफा। इस्तीफा केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज का,इस्तीफा राजस्थान की मुख्यमंत्री बसुन्धरा राजे का और इस्तीफा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का। इनके इस्तीफों की जिद पर अड़ी कांग्रेस और उनका साथ दे रहे वामदल संसद के मानसून सत्र की कार्यवाही नहीं चलने दे रहे हैं। पता नहीं यह दल यह क्यों नही समझ रहे हैं कि उनकी ओर से जिन मुद्दों के बहाने संसद के दोनों सदनों में हंगामा मचाया जा रहा है उनमें न तो आम जनता की कोई दिलचस्पी दिखाई दे रही है और न ही अन्य विरोधी दलों की । कांग्रेस और वाम दलों को यह समझना चाहिए कि संसद का यह सत्र बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस सत्र में जीएसटी,भूमिअधिग्रहण बिल तथा श्रम सुधार जैसे कई अन्य जरूरी विधेयकों को पारित करने की तैयारी है। लेकिन कांग्रेस व वाम दल अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए संसद की कार्यवाही को राष्ट्रीय हितों की अनदेखी सी करते हुए नहीं चलने दे रहे हैं। साथ ही संसद की गरिमा गिराने का काम भी कर रहे हैं। कंाग्रेस ललित मोदी के मसले पर केन्द्र सरकार को तो घेर रही हैं लेकिन अपने आपसे यह सवाल नहीं कर रही है कि उसके नेतृत्व वाली केन्द्रीय सत्ता पूरे चार सालों तक ललित मोदी को लंदन से भारत क्यों नहीं ला सकी ? रही बात व्यापम घोटाले की तो यह मामला वाकई गम्भीर है और इस पर संसद में बहस हो सकती है। लेकिन कांग्रेस इस घोटाले के अलावा अन्य कई राज्यों में हुए घोटालों पर चर्चा के लिए तैयार नहीं हैं। आखिर क्यों ? वैसे व्यापम घोटाले की सीबीआई जांच श्ुारू हो गई है। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगना कहॉ तक उचित है? वैसे सरकार इन मुद्दों पर सदन में चर्चा कराने को तैयार है लेकिन कांग्रेस और उसका साथ दे रहे विपक्षी दल बहस से भाग रहे हैं। विपक्षी दलों की मांग है कि पहले भाजपा सुषमा स्वराज,बसुन्धरा राजे तथ शिवराज सिंह से इस्तीफा ले तब वह बहस करेंगें। जो भी हो कांग्रेस संसद की कार्यवाही कितने दिनों तक नहीं चलने देगी ,यह तो वही जाने। लेकिन अच्छा तो यही रहे कि वह जनहित के बिल पर चर्चा कर उन्हें पारित कराएं। अन्यथा की स्थिति मंे उसकी और भी फजीहत होना तय है।
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