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नोटबंदी को लेकर राजनीतिक दलों के बीच सड़क से लेकर संसद तक सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। कांग्रेस समेत कुछ अन्य विपक्षीदल नोटबंदी को वापस लेने की मांग को लेकर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दे रहे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी से संसद में बयान देने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि नोटबंदी के फैसले से आम जनता परेशान है। रूपयों की खातिर वह बैंकों एवं एटीएम के सामने कतारों में खड़ी हो रही है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी देश हित में अपने इस फैसले पर अडिग हैं। वह मान रहे हैं कि जनता को परेशानी हो रही है। मगर आतंकवाद,कालाधन तथा भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए यह कदम उठाना जरूरी हो गया था। जो भी हो जहां तक विपक्ष की यह मांग थी कि प्रधानमंत्री संसद में बयान दें को जायज माना जा सकता है। लेकिन आम जनता की मुसीबतों का हवाला देकर इस फैसले को गलत ठहराना उचित नहीं कहा जा सकता। आम जनता भी विपक्षीदलों के इस कथन से आश्चर्य में है। उसका कहना है कि यह देश तो आजादी के बाद से कतार में खड़ा होने का अभ्यस्त रहा है। राशन की दूकानों से लेकर गैस,रेलवे टिकट आदि खरीदने के लिए लगी लम्बी-लम्बी कतारें देखी जाती रही हैं। शायद यही वजह है कि कतारों में खडे होने का दर्द झेलने वाले लोग आज भी प्रधानमंत्री के इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं। कितना अद्भुत है यह। जनता को लगता है कि प्रधानमंत्री के इस कदम से देश का विकास होगा। उधर,अभी हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों में चार लोकसभा एवं आठ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि जनता मोदी के फैसले के साथ है। उपचुनाव में कांग्रेस को झटका लगा है। जो हो सो हो नोटबंदी के इस निर्णय से प्रधानमंत्री मोदी की गिनती दुनियां के कठोर फैसले लेने वाले सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली कुआन ,इजरायल के प्रधानमंत्री बेन गुरियन तथा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की श्रेणी में हो रही है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि विपक्षीदल देश हित में उठाये गये मोदी के इस फैसले का समर्थन करें और आम जनता की परेशानियों को दूर करने में उनकी मदद करे। न कि संसद की कार्यवाही ठप करें।
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